थायराइड को मामूली न समझें, कैंसर का भी कारण है ये हार्मोन
जब भी हम शरीर में हार्मोन्स की बात करते हैं तो जेहन में सबसे पहले थायराइड का ही नाम आता है। किसी भी व्यक्ति का वजन असामान्य रूप से बढ़ा दिखे तब भी हम यही कहते हैं कि ये बढ़े हुए थायराइड के कारण हो सकता है। मगर खास बात यह है कि अगर किसी व्यक्ति के शरीर में थायराइड असंतुलित हो तो उसका वजन कम भी हो सकता है।
क्या है थायराइड
जीवनशैली से संबंधित रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल चतुर्वेदी सेहतराग से बातचीत में कहते हैं कि गले से संबंधित बीमारी थायराइड को लोग आमतौर पर ज्यादा खतरनाक नहीं मानते मगर यह सोच खतरनाक हो सकती है। हकीकत यह है कि घेघा रोग और फेफड़े का कैंसर भी थायराइड से जुड़ी बीमारियां ही हैं। थायराइड का संबंध गले के दो हार्मोन टी-थ्री और टी-फोर से है जो शरीर के संचालन के लिए बेहद जरूरी होते हैं। थायराइड को टी.एस.एच. हार्मोन संतुलित करता है। शरीर के हर हिस्से में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। अब तक यह देखा गया था कि आमतौर पर बच्चे और बड़ी उम्र के लोग ही इसका शिकार होते हैं मगर अब युवाओं में भी यह बीमारी देखी जा रही है।
कितने तरह का थायराइड
थायराइड के मुख्यतः चार प्रकार होते हैंः हाइपो थायराइड, हाइपर थायराइड, घेघा रोग और ट्यूमर जिसमें कैंसर और गैर कैंसर दोनों तरह के ट्यूमर हो सकते हैं। भारत में सबसे अधिक प्रकोप हाइपो थायराइड, हाइपर थायराइड और घेघा रोग का है। घेघा रोग जहां बच्चों की आम समस्या है वहीं हाइपो और हाइपर थायराइड बड़ों में पाया जाता है। हाइपो थायराइड में बीमार व्यक्ति का वजन तेजी से बढ़ने लगता है, नींद ज्यादा आती है, कमजोरी और थकान का अनुभव होता है और बाल झड़ने लगते हैं। हाइपर थायराइड में वजन घटने लगता है, घबराहट महसूस होने लगती है, पसीना आता है, हाथ कांपने लगते हैं, भूख ज्यादा लगती है। इसी प्रकार घेघा रोग में गले का एक हिस्सा बढ़ने लगता है। ट्यूमर के मामले में फेफडे का कैंसर थाइराइड से संबंधित बीमारी ही है।
इलाज क्या है
जहां तक इलाज का सवाल है तो हाइपो और हाइपर थायराइड में रोगी को ताउम्र दवा लेनी पड़ती है जबकि फेफडे के कैंसर का इलाज तो सिर्फ ऑपरेशन ही है। हालांकि एक खास बात जो अक्सर मरीजों को बताई तो जाती है मगर मरीज उसका पालन नहीं करते, वो है थायराइड की नियमित जांच। डॉक्टर कहते हैं कि आपको दवा पूरी उम्र खानी होगी तो मरीज दवा शुरू करने के बाद फिर वर्षों तक थायराइड की जांच ही नहीं कराते जो कि घातक साबित हो सकता है।
इस बात का ध्यान जरूर रखें
दरअसल थायराइड को हमेशा एक निश्चित सीमा में होना चाहिए। उस सीमा से कम या अधिक होना दोनों ही स्थितियां ठीक नहीं होतीं। अब होता ये है कि एक बार जांच के बाद डॉक्टर ने थायराइड की दवा शुरू कर दी और तीन महीने में दोबारा जांच करवाने को कहा। मरीज सोचता है कि यार दवा तो पूरी उम्र खानी ही है तो फिर जांच क्यों करवाना। इसका नतीजा ये होता है कि बढ़ा हुआ थायराइड दवा के प्रभाव से निचले स्तर से भी बाहर चला जाता है और ऐसे में मरीज की हालत खराब हो जाती है। जबकि यदि डॉक्टर के बताए अनुसार दोबारा जांच कराई जाए तो ये पता चल जाता है कि दवा की मात्रा को कम या ज्यादा करने की जरूरत तो नहीं है।
इस बीमारी में एलोपैथी पर भरोसा रखें
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बीमारी का प्रभावी इलाज सिर्फ एलोपैथी में है और रोगी के लिए यही सबसे बढि़या विकल्प भी है। वैसे इस बीमारी के इलाज से बेहतर इसका बचाव है और वह ज्यादा महंगा भी नहीं है। यदि बच्चे और बूढे भोजन में उचित मात्रा में आयोडीन का सेवन करें तो उन्हें इस बीमारी से खुद को दूर रखने में बहुत मदद मिलेगी।
शरीर का विकास रूक सकता है
वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक वैद्य देवेंद्र त्रिपाठी के अनुसार आयुर्वेद में यह माना गया है कि शारीरिक विकास में हार्मोन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिसे अक्सर अग्नि कहते हैं। थाइराइड से संबंधित हार्मोन को अग्नि कहा जाता है और इन हार्मोनों का उत्पादन गले की दोनों ओर की दो ग्रंथियों से होता है। इनमें से किसी भी ग्रंथि के अंदर जब कोशिकाएं बढ़ने लगती है तो वहां सूजन आ जाती है और धीरे-धीरे गले का यह हिस्सा बढने लगता है। इस बीमारी को गलकंड या घेघा कहते हैं। थायराइड के असंतुलन के कारण शरीर और भी कई बीमारियों का शिकार हो जाता है। कई बार थायराइड के कारण शरीर का विकास रूक भी जाता है। जहां तक इलाज का सवाल है तो आंवले का रस शहद में मिलाकर एवं प्रवाल पिष्टी, मिश्री, अमृता सत्व का मिश्रण करके पीना चाहिए। थायराइड के शिकार को इलायची और गुलाब को दूध में मिलाकर सेवन करना फायदा पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त गन्ने का शु़द्व रस, गाय का दूध भी लाभकारी है। मरीज को ज्यादा से ज्यादा देर आराम और ठंडी जगह निवास करना चाहिए। खट्टे पदार्थों का सेवन बंद कर देना चाहिए।
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